गहरी से गहरी साइकोलॉजी जो हमारे पास होता वही देते हैं हम ऑटोमेटिकली भी लेते हैं आन्तरिक जगत का नव निर्माण सूखी व्यक्ति सुख ही देगा बीज से वृक्ष वृक्ष से बीज भी ऐसे लोग हैं वासी हैं हम भारत हम भी हँसते है रोते है उन यादो के सायों मे समय खोते हैं क्योंकि मुझे भारत से प्यार हैं सब एक परिवार हैं उनमे मैं भी एक हु हम सही और गल्त की कशमकश में कभी-कभी इंसानियत भूल जाते हैं। और हम खुद दूसरों से कहते फिरते हैं कि इंसानियत मर चुकी है।

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